The Advantages And Disadvantages Of Incorporation Of A Company.


COMPANY AND COMPENSATION LAW
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कम्पनी के समामेलन के लाभ एवं हानियों का वर्णन कीजिए ।
 Discuss The Advantages And Disadvantages Of Incorporation Of A Company.

उत्तर - समामेलन के लाभ ( Advantages of Incorporation )
1 . पृथक वैधानिक अस्तित्व ( Separate legal entity )- कम्पनी का अपने सदस्यों से पृथक वैधानिक अस्तित्व होता है । इसके सदस्यों की मृत्यु अथवा दिवालियापन इसके व्यापार या अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं डालते । इसके विपरीत , साझेदारी फर्म का साझेदारों से अलग कोई अस्तित्व न होने के कारण इसके सभी साझेदारों की मृत्यु हो जाने अथवा दिवाला निकल जाने पर साझेदारी फर्म समाप्त हो जाती है । इस प्रकार कम्पनी अपने सदस्यों के व्यक्तिगत दुर्भाग्यों की जोखिम से मुक्त है ।

2 . शाश्वत अस्तित्व ( Perpetual existence ) - कम्पनी का शाश्वत अस्तित्व होने के कारण , इसके सदस्यों एवं संचालकों की मृत्यु अथवा पागलपन का इसके जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । दूसरी ओर , एक साझेदारी संस्था , किसी साझेदार की मृत्यु , पागलपन अथवा अवकाश ग्रहण करने पर , अपने आप ही समाप्त हो जाती है , यदि इसके विपरीत साझेदारों में कोई अनुबन्ध न हो ।

3 . सीमित दायित्व ( Limited liability ) - समामेलन का एक महत्त्वपूर्ण लाभ यह है कि समामेलित कम्पनी के सदस्यों का दायित्व सामान्यतः उनके द्वारा खरीदे गए शेयरों के अंकित मूल्य तक ही सीमित होता है । साझेदारी में प्रत्येक साझेदार का दायित्व असीमित होता है और व्यापार की हानि - पूर्ति हेतु साझेदारों की निजी सम्पत्तियाँ जोखिम में रहती हैं ।

4 . हस्तांतरणीय शेयर ( Transferable shares ) - सार्वजनिक कम्पनी के शेयर हस्तान्तरणीय होते हैं । ऐसी कम्पनी के सदस्य अपने शेयरों को जब चाहे शेयर बाजार में बेचकर मद्रा में परिवर्तित कर सकते हैं । इसके विपरीत , साझेदारी में कोई भी साझेदार , अन्य सह - साझेदारों की सहमति के बिना , अपने हिस्से का हस्तांतरण नहीं कर सकता । अत : समामेलन के कारण कोई भी सदस्य कम्पनी में अपनी पूँजी स्थायी रूप से विनियोजित करने के लिए बाध्य नहीं होता ।

5 . सदस्यों की संख्या ( Number of members ) - समामेलन का एक लाभ यह भी है कि एक सार्वजनिक कम्पनी में सदस्यों की कोई अधिकतम सीमा न होने के कारण , उसमें कितनी भी बड़ी संख्या में व्यक्ति मिलकर पूँजी जुटा सकते हैं जबकि साझेदारी में सदस्यों की अधिकतम संख्या 50  हैं |




6 . प्रबन्ध एवं नियंत्रण में सुविधा ( Ease in control and management ) - कम्पनी का प्रबन्ध शेयरधारियों द्वारा चुने गये संचालकों द्वारा किया जाता है , फलतः शेयरधारियों को कम्पनी के प्रबन्ध की चिंता नहीं करनी पड़ती । साझेदारी संस्था की दशा में ऐसा नहीं है । इसके अलावा कम्पनी के अधिकांश निर्णय साधारण बहुमत से लिए जाते हैं और महत्त्वपूर्ण निर्णयों के लिए भी केवल विशेष बहुमत ( 75 प्रतिशत ) की व्यवस्था है जबकि साझेदारी संस्था में किसी भी महत्त्वपूर्ण निर्णय के लिए सब साझेदारों की सहमति अनिवार्य है । अत : साझेदारी की तुलना में कम्पनी के प्रबन्ध एवं नियंत्रण में सुविधा रहती है ।

समामेलन की हानियाँ ( Disadvantages of Incorporation ) :

1 . औपचारिकता एवं खर्च ( Formality and expense ) - कम्पनी के संचालन में अत्यधिक । औपचारिकताएँ एवं खर्च , समामेलन की प्रथम हानि है । स्थापना से लेकर समाप्ति तक कम्पनी को अनेक वैधानिक औपचारिकताओं का पालन करना पड़ता है । इसके समामेलन के समय अनेक प्रपत्र ,
आवश्यक पंजीकरण एवं मुद्रांक शुल्क के साथ , कम्पनी रजिस्ट्रार के पास जमा कराए जाते हैं । इसके बाद कम्पनी को कड़े सरकारी नियंत्रण और कम्पनी अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत अपना कार्य - संचालन करना पड़ता है । प्रत्येक कम्पनी को अपनी कार्य अवधि में अनेक रजिस्टर व लेखा पुस्तकें रखनी पड़ती हैं , अनिवार्य रूप से उनकी अंकेक्षण ( Audit ) करानी पड़ती है और समय - समय पर रजिस्ट्रार के पास निर्देशित सूचनाएँ एवं प्रपत्र भेजने पड़ते हैं । इतना ही नहीं , कम्पनी का समापन भी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार ही किया जा सकता है । इसके विपरीत , एक साझेदारी फर्म की स्थापना , संचालन एवं समाप्ति बहुत सरलता से और कम खर्च में हो जाती है ।

2 . गोपनीयता का अभाव ( Loss of privacy ) - व्यापारिक तथ्यों की गोपनीयता का अभाव , समामेलन की दूसरी हानि है । एक सार्वजनिक कम्पनी को अपने संचालक मंडल , पूँजी के ढांचे ( Capital structure ) सम्पत्तियों पर प्रभार , सभाओं की कार्यवाही तथा अन्तिम खातों ( Final Accounts ) आदि के सम्बन्ध के बारे में निर्देशित स्वरूप में विवरण कम्पनी रजिस्ट्रार के पास भेजना होता है । साझेदारी फर्म अपने मामलों को गुप्त रख सकती है । व्यापारिक तथ्यों के प्रकाशन से न केवल खर्च बढ़ता है बल्कि व्यापारिक क्षेत्र में प्रतियोगिता भी बढ़ती है ।

3 . प्रबन्ध में अपव्यय एवं अकुशलता ( Wastage and inefficiency in management ) कम्पनी में शेयरधारियों की संख्या अधिक होती है तथा वे दूर - दूर बिखरे होते हैं । अतः यह सम्भव नहीं होता कि प्रत्येक सदस्य कम्पनी के प्रबन्ध में भाग ले सके । इस कारण से कम्पनी का प्रबन्ध शेयरधारियों द्वारा निर्वाचित संचालकों द्वारा किया जाता है । स्वामित्व एवं प्रबन्ध में पृथकता और शेयरधारियों की अधिक संख्या होने के कारण , संचालक तथा शेयरधारी , दोनों ही कम्पनी के प्रबन्ध में व्यक्तिगत रुचि नहीं लेते । इससे प्रबन्ध में अपव्यय एवं अकुशलता आ जाती है । यह दोष साझेदारी संस्था में नहीं पाया जाता क्योंकि उसके प्रबन्ध एवं संचालन में साझेदार व्यक्तिगत रुचि लेते हैं । प्रयत्न और परिणाम में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है । सारांश में हम कह सकते हैं कि समामेलन की हानियाँ उसके लाभों की तुलना में नगण्य हैं ।।

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