Define A Company , Giving Its Characteristics .


COMPANY AND COMPENSATION LAW
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कम्पनी की परिभाषा दीजिये एक कम्पनी की विशेषताओं का वर्णन कीजिये
Define A Company , Giving Its Characteristics .
उत्तर -
प्रो० हैने ( Prof . Haney ) के अनुसार , " कम्पनी राजनियम द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है जिसका अपना पृथक अस्तित्व , अविच्छिन्न उत्तराधिकार ( Perpetual Succession ) एवं अपनी सार्वमुद्रा ( Common Seal ) होती है "

मुख्य न्यायाधीश मार्शल( Chief Justice Marshall ) के अनुसार , " कम्पनी एक कृत्रिम , अदृश्य तथा अमूर्त व्यक्ति है जिसका अस्तित्व केवल कानून की दृष्टि में ही होता है " क्योंकि कम्पनी कानून द्वारा रचित एक कृत्रिम व्यक्ति है अतः इसको केवल वही अधिकार प्राप्त होते हैं या हो सकते हैं जो इसको जन्म देने वाला इसका अपना मेमोरेन्डम आफ एसोसियेशन (Memorandum of Association ) स्पष्ट रूप से प्रदान करता है उपरोक्त परिभाषाओं में यह स्पष्ट होता है कि कम्पनी विधान द्वारा निर्मित एक ऐच्छिक संस्था है जिसका अपना पृथक नाम और वैधानिक अस्तित्व होता है इसकी पूँजी इसके अपने सदस्यों द्वारा निश्चित मूल्य के हस्तान्तरणीय अंशों (Shares) में विभाजित होती है जिस पर सदस्यों की देयता (liability) सीमित होती है तथा जिसे स्वयं अविच्छिन्न उत्तराधिकार तथा अपनी एक सार्वमुद्रा प्राप्त होती है।

कम्पनी की विशेषताएँ ( Characteristics Of A Company ) –

1 . कानून द्वारा निर्मित कृत्रिम व्यक्ति ( Artificial person created by law ) - जब कम्पनी निर्मित होती है तब वह स्वयं एक व्यक्ति की भाति है जिसका अपना पृथक् नाम होता है , जिसकी निजी सम्पत्ति होती है और जो समस्त व्यावसायिक कार्यों को करने की क्षमता रखता है कम्पनी का जन्म होते ही मानो एक नए व्यवसायी का जन्म हो जाता है एक व्यवसायी की तरह कम्पनी अनुबन्ध कर सकती है , अपने व्यावसायिक उद्देश्य से संबंधित समस्त कार्य कर सकती है
कानून की दृष्टि से ' व्यक्ति ' दो प्रकार के होते हैं -
( 1 ) साधारण या प्राकृतिक व्यक्ति (Natural Person) , जैसे हम- आप सभी मानव प्राणी ;
( 2 ) कृत्रिम व्यक्ति (Artificial Person )
कानून की दृष्टि में कम्पनी एक कृत्रिम व्यक्ति है यद्यपि किसी मानव व्यक्ति की तरह कम्पनी को देखा या छुआ नहीं जा सकता क्योंकि वह अदृश्य और अमूर्त है तथापि कम्पनी एक निगमित निकाय है और कानून की दृष्टि में वह एक व्यक्ति है और वह ऐसा व्यक्ति है जो जन्म से ही वालिग होता है और सब - कुछ करने के लिए सक्षम माना जाता है यद्यपि कम्पनी एक वैधानिक व्यक्ति है पर भारतीय विधान के अन्तर्गत कम्पनी एक नागरिक नहीं है

2 . पृथक अस्तित्व (Separate Entity ) - कम्पनी का अस्तित्व उसके संस्थापकों , अंशधारियों और संचालकों के अस्तित्व से सर्वथा पृथक् और स्वतन्त्र होता है साझेदारी फर्म में यह विशेषता नहीं है फर्म का अपना कोई अस्तित्व है ही नहीं , वह तो साझेदारों के नामों की एक सामूहिक अभिव्यक्ति है कम्पनी का एक स्वयं का वैधानिक अस्तित्व होता है , जिसके कारण कम्पनी अपने सदस्यों से अलग होती है अतः यदि कम्पनी द्वारा कोई दावा किया जाए तो इसे कम्पनी के सदस्यों द्वारा या कम्पनी के सदस्यों पर चलाया हुआ दावा नहीं समझा जायेगा

3 . अविच्छिन्न ( शाश्वत ) उत्तराधिकार ( Perpetual Succession ) - कम्पनी का जीवन उसके सदस्यों के जीवन पर निर्भर नहीं करता है अंश पूँजी वाली कम्पनी में अंशों का अंतरण (Transfer ) होता रहता है जिसके परिणामस्वरूप कम्पनी के कितने ही नए सदस्य आते रहते हैं , कितने ही पुराने सदस्य चले जाते हैं , इसके अतिरिक्त किसी सदस्य की मृत्यु हो सकती है , कोई सदस्य दिवालिया हो सकता है परन्तु कम्पनी का अस्तित्व अपने सदस्यों के अस्तित्व से भिन्न और पृथक है , इसलिए सदस्यों में परिवर्तन होते रहने पर भी कम्पनी का अस्तित्व अप्रभावित रहता है कम्पनी विधि - निर्मित (Created By Law) है। विधान की धरती से जन्मी हुई कम्पनी केवल विधान की धरती में ही समा सकती है , अन्य कारणों जैसे - सदस्यों का आवागमन आदि से कम्पनी के जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता सदस्यों में कोई भी परिवर्तन हो - इससे कम्पनी का जीवन समाप्त नहीं होता , वह स्थायी रूप से काम करती रहती है

4 . सार्वमुद्रा ( Common Seal ) - सार्वमुद्रा कम्पनी के अस्तित्व का प्रतीक है कम्पनी द्वारा निर्गमित किये हुए पत्र बिल , आदि पर इसे लगाया जाता है जिस प्रपत्र पर इसे नहीं लगाया जाता , उसके लिए कम्पनी उत्तरदायी नहीं होती

5 . कार्यक्षेत्र की सीमा ( Limitation Of Action ) - एक कम्पनी अपने पार्षद सीमानियम तथा पार्षद अन्तर्नियमों के बाहर कार्य नहीं कर सकती है इसका कार्यक्षेत्र कम्पनी अधिनियम तथा इसके सीमा - नियम अन्तर्नियम द्वारा सीमित होता है

6 . सीमित दायित्व ( Limited Liability ) - कम्पनी की एक विशेषता यह भी है कि इसके अंशधारियों का दायित्व उनके द्वारा खरीदे गये अंशों पर देय राशि तक ही सीमित है इसके अलावा कम्पनी के दायित्वों का भुगतान करने के लिए सदस्यों से कुछ भी नहीं मांगा जा सकता चाहे कम्पनी में कितनी भी भारी हानि क्यों हुई हो वैसे अधिनियम के अधीन ' गारन्टी द्वारा सीमित कम्पनी ' तथा ' असीमित कम्पनी ' भी निर्मित की जा सकती है परन्तु हमारे देश भारत मे ' अंशों द्वारा सीमित कम्पनी ' ही सबसे अधिक प्रचलित है




7 . पूंजी अंश हस्तान्तरणीय ( Transferability Of Shares ) - एक सार्वजनिक कम्पनी के अंशों का बिना किसी प्रतिबन्ध के अन्तरण किया जा सकता है ऐसी कम्पनी के सदस्य अपने अंशों को इच्छानुसार किसी भी व्यक्ति को अन्तरण या हस्तान्तरित कर सकते हैं , उन्हें कम्पनी से अथवा अन्य सदस्यों से कोई अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।

8 . लाभ के लिए ऐच्छिक संघ ( Voluntary Association For Profit ) - प्रत्येक कम्पनी लाभ कमाने के लिए बनाई जाती है , परन्तु साथ - साथ सार्वजनिक हित का भी ध्यान रखा जाता है कम्पनी अधिनियम के प्रावधानों ने राष्ट्र के आर्थिक विकास में सराहनीय कार्य किया है जो भी लाभ कम्पनी को प्राप्त होता है वह निश्चित नियमों के अनुसार अंशधारियों में बांट दिया जाता है कम्पनी एक ऐच्छिक संघ है , किसी को बलात् इसका अंशधारी नहीं बनाया जा सकता है _ कम्पनी अधिनियम , 2013 में कम्पनियों के सार्वजनिक उत्तरदायित्वों पर जोर दिया गया है कुछ कम्पनियों को अपने प्रत्येक वित्तीय वर्ष में पिछले 3 वर्षों के औसत लाभों के 2 % रकम कम्पनी सामाजिक उत्तरदायित्वों की नीति के लिए व्यय करनी होगी
According to Prof. Hayne, "The company is an artificial person created by Rajaniyam which has its own separate existence, uninterrupted succession and its universal currency."

According to Chief Justice Marshall, "The company is an artificial, invisible and intangible person that exists only in the eyes of the law." Because the company is an artificial person created by law, it only has or can only have rights It gives its own Memorandum of Association giving birth clearly. It is clear in the above definitions that the company is a voluntary body created by legislation which has its own separate name and statutory existence. Its capital is divided by its own members into transferable shares of fixed value on which the liability of the members is limited and which itself receives undisclosed succession and a common currency.
Company Features-
1. Artificial person created by law - When a company is formed, it is like a person with his or her own separate name, who has personal property and who is capable of doing all business functions. A new businessman is born as soon as the company is born. Like a businessman, the company can contract, do all the work related to its business purpose.
In terms of law, 'persons' are of two types -
(1) Ordinary or natural person, like us- all you human beings;
(2) Artificial person
In law, the company is an artificial person. However, like a human person, the company cannot be seen or touched because it is invisible and intangible. However the company is a corporate body and in law terms it is a person and is a person who is born since birth and is considered capable of doing everything. Although the company is a statutory person, the company is not a citizen under Indian legislation
2 . Separate existence - The existence of a company is completely separate and independent from the existence of its founders, shareholders and directors. A partnership firm does not have this feature. The firm has no existence of its own, it is a collective expression of the names of the partners. The company has a statutory existence of its own, which makes the company separate from its members. Therefore, if a claim is made by the company, it will not be treated as a claim made by the members of the company or the members of the company.
3. Uninterrupted Succession - The life of a company does not depend on the life of its members. There is a transfer of shares in a company with share capital, as a result of which many new members of the company keep coming, how many old members leave, in addition to which a member may die, a member may go bankrupt. But the existence of the company is different and separate from the existence of its members, so even after changes in the members, the existence of the company remains unaffected. Company law - is made. A company born from the land of Vidhan can only be included in the land of Vidhan, due to other reasons like the movement of members etc. the life of the company is not affected. Any change in the members - this does not end the life of the company, it continues to work permanently.
4. Sarvamudra - Sarvamudra symbolizes the company's existence. It is applied on the letters and bills issued by the company. The company is not responsible for the form on which it is not imposed.

5. Scope of Work - A company cannot function outside its Councilor Seamanium and Councilor Articles. Its scope is limited by the Companies Act and its Limits - Rules and Articles.
6. Limited Liability - A specialty of the company is that the liability of its shareholders is limited to the amount payable on the shares purchased by them. Apart from this, nothing can be sought from the members to pay the obligations of the company, no matter how much loss has been caused to the company. Under the Act, 'limited company by guarantee' and 'unlimited company' can also be created, but in our country India 'limited company limited by shares' is the most prevalent.
7. Capital Share Transferable - The shares of a public company can be transferred without any restriction. The members of such company can transfer or transfer their shares to any person at will, they do not need to take any permission from the company or from other members.
8. Voluntary Union for Profit - Every company is formed to make profit, but public interest is also taken care of simultaneously. The provisions of the Companies Act have done commendable work in the economic development of the nation. Whatever benefit the company receives is as per certain rules

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