05. लेखांकन की पारिभाषिक शब्दावली

लेखांकन की शब्दावली

Trade(व्यापार) 

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Trade

Purchase and sales of products for motive of earning profit are known as Trade.
(लाभ कमाने के उद्धेश्य से किया गया वस्तुओ का क्रय-विक्रय व्यपार कहलाता है।)


Profession (पेशा)

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Profession

Activities which require special knowledge and skill to be applied by an individual in his work to earn a living is known as a profession. Examples- lawyers are professionals, engaged in legal profession governed by bar council of India, Doctor are professionals who are in medical professionals and are governed by Medical Council of India.
(आय अर्जित करने के लिए किया गया कोई भी कार्य जिसमे प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है उसे पेशा कहते है। जैसे वकील, डॉक्टर, चार्टर्ड अकाउंटेंट. इन कार्यो को करने के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।)


Business (व्यवसाय)

Business
Business refers to those economic activities which are connected with the production, purchase, sales or distribution of goods or services with the main objectives of earning profits. Examples- Fishing, mining, farming, manufacturing, wholesales etc.
(ऐसा कोई व्यवधानिक कार्य जो आय या लाभ प्राप्त करने के लिए किया गया हो।व्यवसाय एक व्यापक शब्द है जिसके अंतर्गत बैंक, बिमा, परिवाहन कंपनी, आदि।बिज़नस(Business), प्रोफेशन(profession), भी व्यवसाय के अंतर्गत आते है। )


Owner (मालिक)

Owner refers to a person or a group of person who invest capital in business, and run the business. The owner is the person taking risks in business. There are three types of owners.
(वह व्यक्ति या व्यक्तियो का समूह जो व्यापर में आवश्यक पूंजी लगाते है।व्यपार का संचालन करते है।व्यपार में होने वाले जोखिम सहन करते है।)

a) Proprietor :- A business owned, managed and controlled by a single individual (single person).
 (यदि व्यापार का स्वामी, एक है जो व्यापार का संचालन करता है। तो उसे प्रोप्रिएटोर)
 b) Partnership :- A business owned, managed and controlled by two or more persons.
(यदि व्यापार का स्वामी दो या दो से अधिक है तो उसे पार्टनर कहतें है।)
 c) Shareholder :- When a group of people owned, managed, and controlled the business.
 (जब बहोत से लोग मिल कर व्यापार में पूंजी(कैपिटल) लगतें है तथा उसका संचालन करते है तो उसे शेयर होल्डर (अंशधारी )कहतें है।)


Capital (पूंजी)

Capital means the amount (in terms of money or assets having monetary value) which Proprietor has invested in the business and can claim for it. For example, Rahul commence business with cash of ₹ 5,00,000 and land value ₹ 50,00,000, then his total capital is ₹55,00,000.
(पूंजी का मतलब वह राशि(चाहे वह रुपया के रूप में हो या सम्पति के रूप में) जो व्यापार का स्वामी व्यापार में लगता है। उसे पूंजी कहते है।उदहारण:- राहुल ने ₹ 5,00,000 रोकड़ा(कैश) तथा ₹50,00,000 की जमीन के साथ व्यापार शूरू किया तो उसका कुल पूंजी ₹ 55,00,000 होगा।)


Drawing(आहरण)


 It is the amount of money and the value of goods which the Proprietor is taken for his domestic use. 
 (व्यापार का स्वामी अपने निजी खर्च के लिए समय-समय पर व्यापार से जो धन रुपया या माल निकलता है।)



  Goods(माल)

 Goods refers to the items forming parts of the stock-in-trade of a business firm, which are purchased and are to be resold. In other words, they refer to the product in which a business unit is dealing. For example the firm has dealing with fridge, T.V, A.C., washing machine, etc.
 (माल उस वस्तु को कहतें है जिसका क्रय-विक्रय या व्यापार किया जाता है।जैसे चीनी मिल द्वारा खरीदा गया गन्ना और चीनी, फर्नीचर कंपनी द्वारा ख़रीदा गया लकड़ी और फर्नीचर।)


Purchase(क्रय)

The term purchase is used only for purchase of goods. Goods are those things which are purchased for resale or for producing the finished products which are also to be sold. The term ‘Purchases’ includes both cash and credit purchases of goods. Goods purchased for cash are called cash purchases but if goods are purchased on credit,it is referred to as credit purchases.
 (पुनः विक्रय के उद्धेश्य से व्यापार में ख़रीदा गया माल क्रय कहलाता है। क्रय दो प्रकार के होते है ,(1)नकद क्रय(cash purchase), (2)उधार क्रय(credit purchase), जो क्रय नकद में किया जाता है उसे नकद क्रय कहतें है। जो क्रय उधार में किया जाता है उसे उधर क्रय कहते है।)



Sales (विक्रय)

This term is used for the sale of only those goods dealt by the firms. The term ‘sales’ includes both cash and credit sales. When goods are sold for cash, they are cash sales but if goods are sold and payment is not received at the time of sale, it refers to credit sales.
 (जो माल बेचा जाता है उसे विक्रय कहते है। नकद में बेचे गए माल को नकद विक्रय ( cash sales) कहतें है। अगर व्यापारी उधार में माल बेचता है तो उसे उधार विक्रय ( credit sales) कहतें है। नकद विक्रय + उधार विक्रय= कूल विक्रय।)


Purchase return (क्रय वापसी)

 Goods purchased may be returned due to any reason, say, they are not as per specifications or are defective. Goods returned are known as purchases returns or returns outward.
 ( ख़रीदे गए माल में से कुछ माल विभिन्न कारणों से वापस किया जाता है वह क्रय वापसी कहलाता है।)


Sales return (विक्रय वापसी)

Goods sold when returned by purchaser are termed as sales returns or return inwards. (जब बेचे हुए माल से कुछ भाग विभिन्न कारणों से व्यापारी लौटादेता है वह विक्रय वापसी कहलाता है।)

Stock or Inventory (रहतिया) 

Stock is the tangible property held by an enterprise for the purpose of sale in the ordinary course of business or for the purpose of using it in the production of goods meant for sales or services to be rendered. Stock may be an opening stock or closing stocks. The amount of goods which are lying unsold at the end of an accounting period is known as closing stocks. The amount of stocks beginning of the accounting period is known as opening stocks.
 ( किसी भी व्यवसाय में वर्त्तमान में हमारे पास किसी भी मात्रा में जो माल उपलब्ध है उसे रहतिया(स्टॉक) कहतें है। स्टॉक दो प्रकार के होते है (1) ओपनिंग स्टॉक(प्रारंभिक रहतिया ), (2) क्लोजिंग स्टॉक( अंतिम रहतिया)। साल के अंत में जो माल बिना बीके रह जाता है वह क्लोजिंग स्टॉक(closing stock) कहलाता है। अगले साल के सुरुआत में वही माल ओपनिंग स्टॉक(opening stock) कहलाता है।


Creditor (लेनदार)

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Creditor

 Any person or organization who sale goods or services in credit or grant (देना) money on credit to the other person or organization is known as crediting. ( वह व्यक्ति या संस्था जो किसी व्यक्ति या संस्था को उधार माल या सेवा बेचती है, या रुपया उधार देती है उसे लेनदार(क्रेडिटर) कहतें है। 

 Debtor (देनदार)


 Any person or organization who Acquire (लेना, प्राप्त करना) good, service, or, money in credit (उधार) from another person or organization is known as Debtor.
 (वह व्यक्ति या संस्था जो किसी अन्य व्यक्ति या संस्था से माल, सेवाए या रुपया उधार लेती है, या प्राप्त करती है , उसे देनदार कहते है। )


 Liabilites (दायित्व)


A liability is typically an amount owed by a company to a supplier, bank, lender, or other provider of goods, services, or loans. Liabilities can be listed under accounts payable, and are credited in the double entry bookkeeping method of managing accounts. 
(दायित्व आमतौर पर किसी कंपनी द्वारा आपूर्तिकर्ता, बैंक, ऋणदाता, या माल, सेवाओं या ऋण के अन्य प्रदाता की बकाया राशि होती है। दायित्व को देय खातों के तहत सूचीबद्ध किया जा सकता है, और खातों के प्रबंधन की डबल एंट्री बुककीपिंग विधि में जमा किया जाता है।)


Assets (सम्पत्ति) : सम्पत्तियो से आशय बिजनेस के आर्थिक स्त्रोत से है जिन्हें मुद्रा में व्यक्त किया जा सकता है, जिनका मूल्य होता है और जिनका उपयोग व्यापर के संचालन व आय अर्जन के लिए किया जाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सम्पत्तियाँ वे स्त्रोत हैं जो भविष्य में लाभ पहुँचाते हैं।उदाहरण के लिए, मशीन, भूमि, भवन, ट्रक, आदि।
assets को दो प्रकार की होती है –
a. Fixed Assets (स्थायी सम्पत्तियां ):  फिक्स्ड असेट वे असेट्स होती है जिन्हें लंबे समय के लिए रखा जाता है ,फिक्स्ड असेट को व्यवसाय हेतु प्रयुक्त किया जाता है और संचालन की सामान्य प्रकिया में दुबारा  बिक्री नहीं की जाती है।

उदाहरण- भूमि, भवन, मशीनरी, संयन्त्र, फर्नीचर
b.  Current Assets (चालू संपत्तियां) : करंट असेट्स वे असेट्स होती है जिन्हें कम समय के लिए रखा जाता है करंट असेट की संचालन की सामान्य प्रकिया में दुबारा बिक्री  की जाती है।
उदाहरण- देनदार, पूर्वदत्त व्यय, स्टॉक, प्राप्य बिल, आदि।

Goods (माल): ऐसी सभी चीजे गुड्स के अंतर्गत शामिल होती है जिन्हें पुनः विक्रय के लिए खरीदा जाता है ।अर्थात जिन वस्तुओ को व्यापारी खरीदते या बेचते है ।
उदाहरण -कच्चा माल, विनिर्मित वस्तुएँ अथवा सेवाएँ।
Discount (डिस्काउंट) : यह रियायत का एक ऐसा प्रकार है जो व्यापारी द्वारा अपने कस्टमर्स को प्रदान किया जाता है।
Revenue (आय): यह व्यवसाय में कस्टमर्स को अपने उत्पादों की बिक्री से अथवा सेवाएँ उपलब्ध कराए जाने से अर्जित की गई राशियाँ होती हैं। इन्हें सेल्स रेवेन्यूज कहा जाता है। कहीं व्यवसायों के लिए रेवेन्यूज के अन्य आइटम्स एवं सामान्य स्त्रोत बिक्री, शुल्क, कमीशन, व्याज, लाभांश, राॅयल्टीज,प्राप्त किया जाने वाला किराया इत्यादि होते हैं।
Expense (व्यय) :आगम की प्राप्ति के लिए प्रयोग की गई वस्तुओं एवं सेवाओं की लागत को व्यय कहते हैं। ये वे लागते होती है जिन्हें किसी व्यवसाय से आय अर्जित करने की प्रकिया में व्यय किया जाता है। सामान्यत: एक्सपेसेंज को किसी अकाउंटिंग अवधि के दौरान असेट्स के उपभोग अथवा प्रयुक्त की गई सेवाओं की लागत से मापा जाता है।
उदाहरण :-विज्ञापन व्यय, कमीशन, ह्रास, किराया, वेतन, मूल्यहास, किराया, मजदूरी, वेतन, व्याज टेलीफोन इत्यादि ।
Expenditure: यह उपभोग किए गए संसाधनों की मात्रा है। आमतौर पर यह लम्बी अवधि की प्रकृति का होता है। इसीलिए, इसे भविष्य में प्राप्त किया जाना लाभदायक होता है।
Income (आय):आगम में से व्यय घटाने पर जो शेष बचता है, उसे आय (Income) कहा जाता है। व्यावसायिक गतिविधियों अथवा अन्य गतिविधियों से किसी संगठन के निवल मूल्य में होने वाली वृद्धि इनकम होती है। इनकम एक व्यापक शब्द है जिसमें लाभ भी शामिल होता है।
आय = आगम – व्यय 
Profit (लाभ) : प्रॉफिट किसी लेखांकन वर्ष के दौरान व्ययों की अपेक्षा आय की वृद्धि को कहा जाता है। यह मालिक की इक्विटी में वृद्धि करता है।
Gain: गेन किसी समयावधि के दौरान इक्विटी (निवल सम्पति) में गुड्स के स्वरूप और स्थान तथा होल्डिंग की जाने वाली असेट्स में परिवर्तन से उत्पन्न होने वाला बदलाव होता है। यह केपिटल प्रकृति या रेवेन्यू प्रकृति में से कोई एक अथवा दोनों ही तरह का हो सकता है।
Turnover (टर्नओवर): एक निश्चित अवधि में केश और क्रेडिट सेल्स दोनों को  मिलाकर कुल सेल्स को टर्नओवर कहते है ।
Drawings (आहरण) : व्‍यापार का मालि‍क अपने व्यक्तिगत  खर्च के लि‍ए जो रूपया व्‍यापार से खर्च करता है या नि‍कालता है वह आहरण कहलाता है जैसे कि‍सी ने अपने  व्‍यापार के रूपयो से बच्‍चों के स्कूल   कि‍ फीस भरी है  तो वह आहरण कहलाती है  खर्च नही कहलाता है यह मालिक द्वारा व्यक्तिगत उपयोग हेतु निकाली जानेे वाली नकद या अन्य असेट्स की राशि है।

Stock  : यह किसी व्यवसाय के अतर्गत उपलब्ध माल, स्पेयर्स और अन्य आइटम्स जैसी चीजों का पैमाना है। इसे क्लोजिंग स्टॉक भी कहा जाता है। किसी व्यापार के अतंर्गत स्टॉक आॅन हैड माल की वह मात्रा होती है जिसे बैलेंस शीट तैयार किए जाने की दिनाकं तक बेचा नहीं गया होता है। इसे क्लोजिंग स्टॉक (एंडिग इन्वेटरी) भी कहा जाता है। किसी विनिमार्ण कम्पनी के अंतर्गत क्लोजिंग स्टॉक में यह कच्चा माल, आधा-तैयार माल और पूरी तरह से तैयार माल शामिल किया जाता है जो क्लोजिंग डेट पर हाथ में उपलब्ध रहता है। इसी प्रकार से, अकाउंटिंग ईयर (लेखा वर्ष) के प्रारंभ मे स्टॉक की मात्रा को ओपनिंग स्टॉक (प्रारंभिक इन्वेटरी) कहा जाता है।

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