लेखांकन के कार्य
लेखा करना (Recording)
लेखांकन का सर्वप्रथम कार्य समस्त व्यवसायिक सौदों एवं घटनाओं का व्यवस्थित एवं विधिवत् ढंग से जर्नल (Journal) में लेखा करना है। यहां यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि लेखांकन में उन्हीं सौदों एवं घटनाओं का लेखा किया जाता हैं जो वित्तीय स्वभाव की हैं तथा जिन्हें मुद्रा के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।
वर्गीकरण करना
मौद्रिक सौदों का लेखा करने के पश्चात् उन्हें उनके स्वभाव के अनुसार समानता के आधार पर पृथक पृथक समूहों में वर्गीकरण किया जाता है ताकि पृथक पृथक मदों के लिये पृथक पृथक सूचनाएं उपलब्ध हो सकें। उदाहरणतया समस्त बिक्री के सौदो को, जो भिन्न भिन्न स्थानों पर लिखे गये हैं, एक ही स्थान पर एकत्रित करना, ताकि कुल बिक्री की राशि ज्ञात हो सके। यह कार्य खाताबही में खाते खोलकर किया जाता है।
संक्षिप्तीकरण (Summarizing)
लेखांकन का मुख्य उद्देश्य निर्णय लेने वालों के लिये महत्वपूर्ण सूचना प्रदान करना है। इस कार्य के लिये वर्ष के अन्त में सभी खातों के शेष ज्ञात करके उनसे एक सूची बनाई जाती है और उस सूची से दो विवरण- लाभ-हानि खाता तथा चिट्ठा तैयार किया जाता है। इन विवरणों से व्यवसाय की लाभदायकता, वित्तीय स्थिति, भुगतान क्षमता आदि के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण सूचनाएं उपलब्ध हो जाती है। इस प्रकार वर्षभर की समस्त सूचनाऐं संक्षिप्त होकर दो विवरणों में समा जाती है जो व्यवसाय के अन्तिम परिणाम दर्शाती है।
निर्वचन करना (Interpreting)
लेखांकन न केवल लेखा करने, वर्गीकरण करने एवं संक्षिप्तीकरण करने का ही कार्य करती है बल्कि उन आंकड़ों का निर्वचन करके निष्कर्ष एवं उपयोगी सूचनाऐं भी प्रदान करती है। उदाहरणतया संस्था में प्रत्याय की दर क्या रही ? विज्ञापन का प्रभाव बिक्री में वृद्धि पर कितना हुआ? तरलता तथा भुगतान क्षमता की स्थिति आदि सूचनाएं उपलब्ध हो जाती है।
सूचनाओं का संवहन (Communication of information)
लेखों के विश्लेषण एवं निर्वचन से प्राप्त सूचनाओं का उनके प्रयोगकर्ताओं जैसे विनियोजकों, लेनदारों, सरकार, स्वामियों आदि तथा व्यवसाय में हित रखने वाले अन्य व्यक्तियों को संवहन किया जाता है ताकि वे व्यवसाय की वित्तीय स्थिति के सम्बन्ध में अपनी राय बना सकें तथा भावी योजना के सम्बन्ध में निर्णय ले सके।
वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति
लेखांकन का अन्तिम कार्य ऐसी व्यवस्था करना भी हैं जिससे विभिन्न वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके। अनेक ऐसे कानून हैं जिनकी पूर्ति करना एक व्यवसायी के द्वारा अनिवार्य है जैसे आयकर की रिटर्न प्रस्तुत करना, बिक्रीकर की रिटर्न प्रस्तुत करना, सेबी (SEBI) के द्वारा बनाये गये नियमों की पालना करना आदि। लेखांकन इस कार्य में सहायता करती है।
लेखांकन की आवश्यकता
आधुनिक व्यापारिक क्रियाओं के सफल संचालन के लिए लेखांकन को एक आवश्यकता (छमबमेपजल) समझा जाता है। लेखांकन क्यों आवश्यक है, इसे निम्न तर्कों से स्पष्ट किया जा सकता है -
- (१) व्यापारिक लेन-देन को लिखित रूप देना आवश्यक होता है- व्यापार में प्रतिदिन अनगिनत लेन-देन होते हैं, इन्हें याद नहीं रखा जा सकता। इनको लिख लेना प्रत्येक व्यापारी के लिए आवश्यक होता है। पुस्तपालन के माध्यम से इन लेन-देनों को भली-भांति लिखा जाता है।
- (२) बेईमानी व जालसाजी आदि से बचाव के लिए लेन-देनों का समुचित विवरण रखना होता है - व्यापार में विभिन्न लेन-देनों में किसी प्रकार की बेईमानी, धोखाधड़ी व जालसाजी न हो सके, इसके लिए लेन-देनों का समुचित तथा वैज्ञानिक विधि से लेखा होना चाहिए। इस दृष्टि से भी पुस्तपालन को एक आवश्यक आवश्यकता समझा जाता है।
- (३) व्यापारिक करों के समुचित निर्धारण के लिए पुस्तकें आवश्यक होती हैं - एक व्यापारी अपने लेन-देनों के भली-भांति लिखने, लेखा पुस्तकें रखने तथा अन्तिम खाते आदि बनाने के बाद ही अपने कर-दायित्व की जानकारी कर सकता है। पुस्तपालन से लेन-देनों के समुचित लेखे रखे जाते हैं। विक्रय की कुल राशि तथा शुद्ध लाभ की सही व प्रामाणिक जानकारी मिलती है जिसके आधार पर विक्रय-कर व आयकर की राशि के निर्धारण में सरलता हो जाती है।
- (४) व्यापार के विक्रय-मूल्य के निर्धारण में पुस्तपालन के निष्कर्ष उपयोगी होते हैं - यदि व्यापारी अपने व्यापार के वास्तविक मूल्य को जानना चाहता है या उसे उचित मूल्य पर बेचना चाहता है तो लेखा पुस्तकें व्यापार की सम्पत्तियों व दायित्वों आदि के शेषों के आधार पर व्यापार के उचित मूल्यांकन के आंकड़े प्रस्तुत करती है।
लेखांकन के लाभ
- 1. पूंजी या लागत का पता लगाना- समस्त सम्पत्ति (जैसे मशीन, भवन, रोकड़ इत्यादि) में लगे हुए धन में से दायित्व (जैसे लेनदार, बैंक का ऋण इत्यादि) को घटाकर किसी विशेष समय पर व्यापारी अपनी पूंजी मालूम कर सकता है।
- 2. विभिन्न लेन-देनों को याद रखने का साधन - व्यापार में अनेकानेक लेन-देन होते हैं। उन सबको लिखकर ही याद रखा जा सकता है और उनके बारे में कोई जानकारी उसी समय सम्भव हो सकती है जब इसे ठीक प्रकार से लिखा गया हो।
- 3. कर्मचारियों के छल-कपट से सुरक्षा- जब लेन-देनों को बहीखाते में लिख लिया जाता है तो कोई कर्मचारी आसानी से धोखा, छल-कपट नहीं कर सकता और व्यापारी को लाभ का ठीक ज्ञान रहता है। यह बात विशेषकर उन व्यापारियों के लिये अधिक महत्व की है जो अपने कर्मचारियों पर पूरी-पूरी दृष्टि नहीं रख पाते हैं।
- 4. समुचित आयकर या बिक्री कर लगाने का आधार- अगर बहीखाते ठीक रखे जायें और उनमें सब लेनदेन लिखित रूप में हों तो कर अधिकारियों को कर लगाने में सहायता मिलती है क्योंकि लिखे हुए बहीखाते हिसाब की जांच के लिए पक्का सबूत माने जाते हैं।
- 5. व्यापार खरीदने बेचने में आसानी - ठीक-ठीक बहीखाते रखकर एक व्यापारी अपने कारोबार को बेचकर किसी सीमा तक उचित मूल्य प्राप्त कर सकता है। साथ ही साथ खरीदने वाले व्यापारी को भी यह संतोष रहता है कि उसे खरीदे हुऐ माल का अधिक मूल्य नहीं देना पड़ा।
- 6. अदालती कामों में बहीखातों का प्रमाण (सबूत) होना- जब कोई व्यापारी दिवालिया हो जाता है (अर्थात् उसके ऊपर ऋण, उसकी सम्पत्ति से अधिक हो जाता है) तो वह न्यायालय में बहीखाते दिखाकर अपनी निर्बल स्थिति का सबूत दे सकता है और वह न्यायालय से अपने को दिवालिया घोषित सकता है। उसके ऐसा करने पर उसकी सम्पत्ति उसके महाजनों के अनुपात में बंट जाती है और व्यापारी ऋणों के दायित्व से छूट जाता है। यदि बहीखाते न हों तो न्यायालय व्यापारी को दिवालिया घोषित करने में संदेह कर सकता है।
- 7. व्यापारिक लाभ-हानि जानना - बही खातों में व्यापार व लाभ-हानि खाते निश्चित समय के अन्त में बनाकर कोई भी व्यापारी अपने व्यापार में लाभ या हानि मालूम कर सकता है।
- 8. पिछले आँकड़ों से तुलना - समय-समय पर व्यापारिक आँकड़ों द्वारा अर्थात् क्रय-विक्रय, लाभ-हानि इत्यादि की तुलना पिछले सालों के आंकड़ों से करके व्यापार में आवश्यक सुधार किए जा सकते हैं।
- 9. वस्तुओं की कीमत लगाना- यदि व्यापारी माल स्वयं तैयार कराता है और उन सब का हिसाब बहीखाते बनाकर रखता है तो उसे माल तैयार करने की लागत मालूम हो सकती है। लागत के आधार पर वह अपनी निर्मित वस्तुओं का विक्रय मूल्य निर्धारित कर सकता है।
- 10. आर्थिक स्थिति का ज्ञान- बहीखाते रखकर व्यापारी हर समय यह मालूम कर सकता है कि उसकी व्यापारिक स्थिति संतोषजनक है अथवा नहीं।
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