चंद्रयान 2 को फेल मिशन नहीं कहा जा सकता

चंद्रयान 2 को फेल मिशन नहीं कहा जा सकता

भारत के मिशन चंद्रयान 2 में आखिरी वक्त पर गड़बड़ी आ गई. ISRO के कंट्रोल रूम से लैंडर का संपर्क टूट गया. लेकिन इसके बावजूद इस मिशन को फेल नहीं कहा जा सकता…
22 जुलाई 2019 को इसरो ने 3,840 किलोग्राम वजनी चंद्रयान 2 को सतीश धवन स्पेस सेण्टर श्री हरिकोटा से सफलता पूर्वक Launch किया गया था। 20 अगस्त को चंद्रयान 2 चंद्रमा की कक्षा में सफकतापूर्वक दाखिल होने में भी कामयाब रहा था। यहाँ तक तो सारी मशीन एक साथ गयी लेकिन इसके बाद ऑर्बिटर और लैंडर दोनों को अलग अलग हो जाना था, ऑर्बिटर मतलब जिसने चाँद के चारो तरफ चक्कर लगाने थे, और विक्रम लैंडर वो जिसमे चन्द्रमा की सतह पर लैंड करना था। और २ सितंबर 2019 को ऑर्बिटर से लैंडर को successfully अलग भी कर दिया गया था। यहाँ तक तो यह मिशन लगभग 80% कामयाब हो चूका था क्योंकि इस मिशन का जो सबसे बड़ा और सबसे कीमती पार्ट था वो था ऑर्बिटर जो कि चाँद की कक्षा में दाखिल करवाया गया है और अभी भी वह चाँद के चक्कर लगा रहा है। अब ऑर्बिटर को तो चाँद की कक्षा में Successfully दाखिल करवा दिया गया था जो कि अभी भी सही से काम कर रहां है और 1 साल तक ऐसे ही लगातार काम करता रहेगा। तो थोड़ी देर के लिए अब हम ऑर्बिटर को भूल जाते है। अब बात करते हैं विक्रम लैंडर की कि उसका क्या हुआ।
तो जब लैंडर ऑर्बिटर से अलग हुआ तो वह धीरे धीरे चन्द्रमा की सहत की ओर नीचे आने लगा और प्लान के मुताबिक पर चल रहा था , लैंडर विक्रम (Lander vikram) के चांद की सतह पर पहुंचने से पहले के 15 मिनट बहुत ज्यादा important थे। क्योंकि इन्ही 15 मिनट में लैंडर की velocity भी कम करनी थी, लैंडर को 90 डिग्री भी घुमाना था, और लैंडर को चाँद की सतह को scan भी करना था, जहाँ पर वह safly land कर पाए। और वो 15 मिनट्स अब शुरू हो चुके थे। लैंडिंग के दौरान कुछ साँसे रोक देने वाले पल
शुक्रवार रात 1 बजकर 38 : विक्रम के उतरने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी।1बजकर 44 : सतह से 28 किमी दूर था
1बजकर 46 : 19 किमी दूर
1बजकर 49 : 12 किमी दूर रह गया
1बजकर 50 : 2.5 किमी दूर रह गया
1बजकर 52 : 2.1 किमी दूरी पर सूचनाएं मिलना बंद
1बजकर 54 : धरती से कनेक्शन की पुष्टि का इंतजार
1बजकर 55 : विक्रम लैंडिंग साइट की पुष्टि में व्यस्त
1बजकर 56 : इसरो प्रमुख ने पीएम मोदी को दी जानकारी
2बजकर 11 : इसरो ने कहा आंकड़ों का इंतजार। इसके बाद ही किसी निष्कर्ष में पहुंचे
2बजकर 17 : इसरो प्रमुख सिवन ने की संपर्क टूटने की औपचारिक घोषणा

लैंडर विक्रम शुक्रवार की रात को चांद की सतह से महज 2.1 किलोमीटर की दूरी पर आकर वह अपना रास्ता भटक गया और उससे ISRO का संपर्क टूट गया। भारत के करोड़ों देशवासियों की सांसें 15 मिनट के दौरान जैसे सी रुक गई थीं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद इस ऐतिहासिक पल को देखने के लिए ISRO के मुख्यालय में मौजूद थे। इसरो के वैज्ञानिकों ने मिशन मून में लैंडिंग की जिस तरह से तैयारी की थी, उस तरह से हो नहीं पाई लेकिन इसके बावजूद मिशन को फेल नहीं कहा जा सकता।  इसरो के वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत फ्लॉप नहीं हुई है. और ऐसा कहने के पीछे एक नहीं कई सारी वजहें हैं.
चंद्रयान 2 भले ही चांद से महज चंद किलोमीटर दूर कही गुम जरूर हो गया है। लेकिन, अब भी इस मिशन को लेकर उम्मीदें कायम है। यह मिशन करीब-करीब कामयाब रहा है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वैज्ञानिकों के मुताबिक चंद्रयान 2 से संपर्क टूटने के बाद भी यह मिशन 95 % तक सफल रहा है। क्योंकि 2,379 किलो वजनी ऑर्बिटर चाँद की सतह से 119 किलोमीटर ऊपर चक्कर लगा रहा है जिसमे 8 पॉवरफुल डिवाइसेस लगाए गए हैं।

चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर १ साल तक काम करेगा –

जिसने चांद का डिजिटल मॉडल तैयार करने के लिए टेरेन मैपिंग कैमरा-2 है।
चांद की सतह पर मौजूद तत्वों की जांच के लिए इसमें चंद्रयान 2 लार्ज एरिया सॉफ्ट एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर है।
क्लास को सोलर एक्स-रे स्पेक्ट्रम इनपुट मुहैया कराने के लिए सोलर एक्स-रे मॉनीटर है।
चांद पर पानी की मौजूदगी का पता लगाने और वहां मौजूद मिनरल्स पर शोध के लिए इसमें इमेजिंग आईआर स्पेक्ट्रोमीटर है।
चांद के ध्रुवों की मैपिंग करने और सतह के नीचे जमी बर्फ का पता लगाने के लिए इसमें डुअल फ्रीक्वेंसी सिंथेटिक अपर्चर रडार है।
चांद की ऊपरी सतह पर शोध के लिए इसमें चंद्र एटमॉसफेयरिक कंपोजिशन एक्सप्लोरर-2 है।
ऑर्बिटर हाई रेजॉल्यूशन कैमरा के जरिये यह हाई रेस्टोपोग्राफी मैपिंग की जाएगी।
चांद के वातावरण की निचली परत की जांच करने के लिए डुअल फ्रीक्वेंसी रेडियो उपकरण है।

चंद्रयान 2 को कामयाब इसलिए भी मानना होगा क्योंकि बहुत ही कम खर्च में इस मिशन को अंजाम दिया गया. चंद्रयान 2 में सिर्फ 140 मिलियन डॉलर यानी करीब 1000 करोड़ का खर्च आया. अमेरिका ने अपने अपोलो मिशन में 100 बिलियन डॉलर खर्च किए थे.
चीन ने अपने चांग इ 4 नमक अंतरिक्ष यान को चाँद पर पहुँचाने के लिए 1200 करोड़ रुपये खर्च किये थे।
वही पिछले महीने इसराइल ने भी अपने लैंडर को चाँद पर लैंड करवाने के लिए एक बेरशीट मिशन किया था, लेकिन उसका बेरशीट चाँद से 10 की ऊंचाई पर ही क्रैश हो गया था। और कण्ट्रोल रूम से संपर्क टूट गया था।
और भारत ने अपने एक ही मिशन में लैंडर, रोवर, और ऑर्बिटर रखे हुए थे उसके बाद भी कुल खर्चा 970 करोड़ रुपये आया। इसरो की यही खासियत उनको बाकि देशो से अलग बबनाती है। क्योंकि जितने खर्च में बाकि देश केवल 1 मिशन करते हैं उस से भी कम खर्चे में इसरो अपने 3 मिशन एक साथ करने की क्षमता रखता है।

नासा भी चाँद पर पहुँचने से पहले 12 बार फेल हुआ था और तब जाकर 13 वी बार में वो चाँद पर पहुँच पाया था।
अगर बात करे रूस की तो रूस को चाँद पर पहुंचे से पहले 5 बार फेल हुआ था उसके बाद छटवां और सातवा मिशन उसका सक्सेफुल हुआ उसके बाद फिर से रूस लगातार 11 बार फेल हुआ। तब जाकर रूस को यह कामयाबी मिली।
और इसरो का तो यह पहला एटेम्पट था जिसमे भी वह 99.9 % सफल ही रहा, और ऑर्बिटर लगातार १ साल तक धरती पर चाँद का डाटा भेजता रहेगा। और मुझे 100 % भरोसा है कि भारत अपने अगले मिशन चंद्रयान 3 में चाँद की सतह पर जरूर पहुँचेगा और कामयाबी हासिल करेगा।
हमको अपने इसरो के वैज्ञानिको पर इसलिए भी गर्व होना चाइये दोस्तों क्योंकि इन्होने लॉन्चर, ऑर्बिटर, रोवर, लैंडर, सब कुछ खुद ही बनाया था। कोई भी पार्ट दूसरे देश से नहीं खरीदा था। हालाँकि पहले लैंडर के लिए रूस से बात हुई थी लेकिन बाद में रूस लैंडर बनाने से मुकर गया था फिर इसरो ने खुद से ही लैंडर बनाने की सोची और बना भी दिया।
दोस्तों इसे इतने का बजट में भी इसरो अंतरिक्ष में इतनी बड़ी बड़ी छलांग लगाता है, जिसके लिए हमको उनपर गर्व होना चाहिए। आज इसरो किसी भी अन्य देश पर निर्भर नहीं है वो जो चाहे बनान सकता है और जैसा मिशन चाहे कर सकता है। अभी इसरो के कुछ upcoming missions हैं

ISRO’s upcomming missions –
Aditya-L1 (2020)
Gaganyaan mission (2022 )
Mangalyaan-2 (2022-2023)
Chandrayan-3 mission (2024)
Shukrayaan mission (2023-2025)
India’s Space Station (2023)

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